कर्नाटक सरकार ने हाल ही में इंफोसिस कंपनी को एक प्री-शो कॉज IGST नोटिस भेजा था, जिसमें दावा किया गया कि कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2018 से 2022 के बीच 32,000 करोड़ रुपये के इंटिग्रेटेड गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (IGST) की चोरी की है। इसे लेकर देशभर में काफ़ी हलचल मची और यह मुद्दा उद्योग जगत में चर्चा का विषय बन गया।
डायरेक्टरेट जनरल ऑफ GST इंटेलिजेंस (DGGI) द्वारा इंफोसिस को यह नोटिस 30 जुलाई को मिला था, जिसमें कहा गया था कि कंपनी ने रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत विदेशी शाखाओं द्वारा दी गई सेवाओं के लिए IGST का भुगतान नहीं किया। यानी, कंपनी को विदेशी शाखाओं से प्राप्त सेवाओं के लिए टैक्स देना था, जोकि कंपनी ने नहीं दिया।
अब कर्नाटक राज्य के अधिकारियों ने इस प्री-शो कॉज नोटिस को वापस ले लिया है और इंफोसिस को आगे की प्रतिक्रियाएँ DGGI के केंद्रीय प्राधिकरण को जमा करने का निर्देश दिया है। इस कदम से इंफोसिस को थोड़ी राहत मिली है और यह मामला अब DGGI द्वारा तय किया जाएगा। इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण ये है कि इससे डबल जेपर्डी (दूसरे बार सजा मिलना) जैसी स्थिति से बचा जा सकेगा।
नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनियाँ (नैसकॉम) जैसे उद्योग संगठनों ने इस नोटिस की आलोचना की है और कहा है कि यह आईटी उद्योग के ऑपरेटिंग मॉडल की समझ की कमी को दर्शाता है। उनका कहना है कि विदेशी शाखाओं द्वारा किये गए खर्चों की प्रतिपूर्ति को सेवाओं के भुगतान के रूप में देखा जाना उचित नहीं है। इसके अलावा, यह भी विवाद है कि क्या विदेशी शाखाएँ स्वतंत्र कानूनी संस्थाएँ हैं या नहीं।
इस नोटिस के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि इसी प्रकार के नोटिस अन्य IT और ITES कंपनियों को भी 5 अगस्त तक भेजे जा सकते हैं। टैक्स डिमांड के समयसीमा समाप्त होने के कारण इसे जल्द ही भेजना अनिवार्य हो गया है। यह मामला विशेष रूप से उस समय की याद दिलाता है जब स्थानीय शाखाओं के द्वारा सेवाओं का निर्यात करने पर विवाद उत्पन्न हुआ था।
कुल मिलाकर, यह नोटिस वापसी कर्नाटक सरकार और इंफोसिस के बीच उत्पन्न हुए विवाद को शांत करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है। सभी संबंधित पक्षों को अब इस मुद्दे का समाधान DGGI के माध्यम से प्राप्त होने की आशा है, जिससे भारतीय IT उद्योग को भविष्य में ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े।
एक टिप्पणी लिखें