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अहिंसा: शांति और सामाजिक बदलाव का मार्ग

When working with अहिंसा, एक ऐसी नीति जो हिंसा के बजाय शांति, समझदारी और सच्चे प्रतिरोध को प्राथमिकता देती है. Also known as निहिंसात्मक प्रतिरोध, it गांधीजी के विचारों में आधारभूत सिद्धांत है, जहाँ उन्होंने अहिंसा को राजनैतिक रणनीति और नैतिक शक्ति का स्रोत बताया। इस सिद्धांत ने कई शांतिप्रद आंदोलन को जन्म दिया, जैसे 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, अमेरिकी सिविल राइट्स मोशन, और दक्षिण अफ्रीका का एंटी-अपरथाइड संघर्ष। अहिंसा सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित करती है, जबकि नैतिक शक्ति इसके कार्यान्वयन को सशक्त बनाती है। इस प्रकार, अहिंसा न केवल हिंसा‑रहित कार्य है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक‑राजनीतिक ढांचा है जो लोगों को अपने अधिकारों के लिये बिना बल प्रयोग के लड़ने की राह दिखाता है।

अहिंसा के प्रमुख घटक और उनका परिचय

पहला घटक है सत्याग्रह – सत्य की खोज में दृढ़ता और अडिगता। सत्याग्रह का मतलब है सत्य के लिए महत्त्वपूर्ण और नैतिक अधिकारों की माँग, जिसमें विरोधी विचारधारा के साथ संवाद भी शामिल है। दूसरा घटक अस्थिरता यानी तीव्र प्रतिरोध, लेकिन बिना शारीरिक हानि पहुँचाए। अस्थिरता के प्रयोग से सत्ता‑संरचनाएँ नहीं टूटतीं, पर उनका दबाव बढ़ता है – जैसे 2020‑2021 में भारत में छात्रों द्वारा किए गए नॉन‑वायलेंट प्रोटेस्ट। तीसरा घटक है सहयोग – विभिन्न वर्गों, जातियों, धर्मों और लिंगों के बीच एकजुटता। जब सामाजिक समूह मिलकर अहिंसात्मक रूप से आवाज़ उठाते हैं, तो उनका प्रभाव अधिक टिकाऊ और गहरा होता है। ये तीनों घटक मिलकर अहिंसा को एक जीवंत, व्यावहारिक और सशक्त आंदोलन बनाते हैं। अहिंसा का वास्तविक प्रभाव तब स्पष्ट होता है, जब इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मुद्दों में लागू किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, 1960‑के दशक में भारत में गौतम बुद्ध के जैन विचारधारा वाले आंदोलन ने अहिंसा को आध्यात्मिक पुनर्जागरण के साथ जोड़ा, जिससे कई सामाजिक रीति‑रिवाज़ों में बदलाव आया। उसी तरह, 2019‑2020 में इज़राइल‑फ़िलिस्तीन संघर्ष के दौरान कई अंतरराष्ट्रीय NGOs ने अहिंसात्मक प्रतिबंधात्मक उपायों का प्रयोग किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में नई चर्चा और दबाव बना। इन सभी मामलों में अहिंसा ने शक्ति के गैर‑हिंसक दांव को बढ़ावा दिया और नीति‑निर्माताओं को सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में सोचने पर मजबूर किया। आज की डिजिटल युग में अहिंसा का प्रयोग नई रूपरेखा ले रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर #PeaceAndNonViolence जैसे हैशटैग्स के तहत हजारों युवा बिना हिंसा के विरोध दिखा रहे हैं। ऑनलाइन पेटिशन, वर्चुअल रैली और डिजिटल अक्षमता के माध्यम से लोग दबाव बनाते हैं, जो पारम्परिक आंदोलन के समान प्रभाव शैलियों को बदलता है। यह परिवर्तन दर्शाता है कि अहिंसा की नैतिक शक्ति केवल शारीरिक मैदानी कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि सूचना‑प्रौद्योगिकी के माध्यम से भी फले‑फूलेगी। अहिंसा के साथ जुड़े कई सिद्धांत हैं, जैसे ‘सांगठनिक साहस’, ‘रचनात्मक असहयोग’ और ‘संकल्पित आत्म-नियंत्रण’। ये सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि संस्थागत स्तर पर भी लागू होते हैं। जब कंपनियाँ सामाजिक उत्तरदायित्व के बारे में अहिंसात्मक नीति अपनाती हैं, तो वे अपने कर्मचारियों और ग्राहकों के बीच विश्वास बनाती हैं। इसी कारण से कई स्टार्ट‑अप्स ने ‘उनीति‑आधारित कन्फ्लिक्ट रेसॉल्यूशन’ मॉडल अपनाया है, जो विवादों को वार्ता और मध्यस्थता के जरिए हल करता है, न कि बल प्रयोग से। इस प्रकार, अहिंसा का दायरा राजनीति, व्यापार और सामाजिक जीवन के हर कोने तक पहुँचता है। समग्र रूप में, अहिंसा एक बहु‑आयामी अवधारणा है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया, नैतिक शक्ति, सामाजिक एकजुटता और शांति के बीच संतुलन स्थापित करती है। यही कारण है कि विभिन्न समाचार लेख, विश्लेषण और रिपोर्ट इस टैग को विभिन्न क्षेत्रों में देखते हैं – चाहे वह राजनीति में एंटी‑भ्रष्टाचार आंदोलन हो, खेल में खेल भावना का प्रचार हो, या आर्थिक नीति में सतत विकास की बात हो। नीचे आप देखेंगे कैसे वर्तमान खबरें इस व्यापक अहिंसा की भावना को प्रतिध्वनित करती हैं, और कैसे विभिन्न क्षेत्रों में यह विचार अमल में लाया जा रहा है।

गांधी जयंती 2024: 155वीं जयंती पर दिल्ली से विशेष कार्यक्रम
Abhishek Rauniyar

Abhishek Rauniyar

गांधी जयंती 2024: 155वीं जयंती पर दिल्ली से विशेष कार्यक्रम

2 अक्टूबर 2024 को गांधी जयंती के अवसर पर दिल्ली में राज घाट में विशेष कार्यक्रम हुए। नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की उपलब्धियों को उजागर किया, जबकि अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस का महत्व दोहराया गया।

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