2024 के विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल के परिणाम जारी होते ही सियासी गलियारों में हलचल मच गई है। खासकर हरियाणा में कांग्रेस के लिए खुशखबरी है, जहां वह 50-58 सीटों पर कब्जा कर सकती है। यह पार्टी के लिए बड़ी राहत की बात है क्योंकि हाल ही में हुए चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन अपेक्षित नहीं था। कांग्रेस ने इस बार सरकार बनाने के लिए पूरी तैयारी की थी, जिसका फल उसे मिल सकता है। कांग्रेस ने हरियाणा में स्थानीय मुद्दों से लेकर राष्ट्रीय मसलों तक जनता के समक्ष प्रभावी ढंग से अपने विचार रखे, जो उसकी सफलता के प्रमुख कारणों में से एक है।
भारतीय जनता पार्टी के लिए यह एग्जिट पोल परिणाम निराशाजनक साबित हो सकते हैं। भाजपा के पास अब तक हरियाणा की सत्ता में मजबूती से जमे रहने का अनुभव है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने उसे कड़ी टक्कर दी है। भाजपा के पास अवसर थे अपनी नीतियों और विकास परियोजनाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए, लेकिन लगता है कि कुछ क्षेत्रों में उन्हें सफलताएँ नहीं मिल सकीं। हरियाणा में सरकारी योजनाओं की कार्यान्विति की स्थिति, किसानों की समस्याएँ और बेरोजगारी जैसे मुद्दे इस चुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं। जनता के समक्ष रखे गए मुद्दों का एक उचित जवाब भाजपा को देना था, जहां वह शायद उतनी परिपक्व नहीं दिखी।
एग्जिट पोल के नतीजे सिर्फ एक संभावित तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, अंतिम परिणाम पर कुछ भी कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी। लेकिन जिस प्रकार के संकेत इन नतीजों से मिल रहे हैं, वह हरियाणा की राजनीति में एक नए परिवर्तन की ओर इशारा करते हैं। लगभग एक दशक से सत्ता में रही भाजपा के लिए यह एक चेतावनी होगी, जबकि कांग्रेस एक बार फिर से अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने की दिशा में दिखाई दे रही है।
जम्मू-कश्मीर में इस बार का चुनावी मुकाबला विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा, जहां तीन चरणों में मतदान संपन्न हुआ। यहां कांग्रेस ने फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेस (NC) के साथ गठबंधन किया था, जबकि अन्य प्रमुख पार्टियों ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती और भाजपा ने भी अपने स्तर पर चुनाव में जोर-शोर से भाग लिया। जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ वर्षों में धारा 370 हटाने के बाद से राजनीतिक माहौल बहुत बदल गया है, और यही बदलाव इन चुनावों में भी देखने को मिला।
जम्मू-कश्मीर में इस बार कुछ नई पार्टियों का भी उभार देखा गया। अल्ताफ बुखारी की जम्मू और कश्मीर अपनी पार्टी, गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी, और सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस भी चुनाव मैदान में उतरीं। इन पार्टियों का मुख्य उद्देश्य जम्मू-कश्मीर के लोगों के मुद्दों को विधानसभा के माध्यम से उठाना है। हालांकि, इनकी सफलता की राह आसान नहीं होगी क्योंकि पहले से ही स्थापित पार्टियों के साथ मुकाबला है।
हर किसी की नजरें अब चुनाव के आधिकारिक नतीजों पर लगी हुई हैं, जो जल्दी ही घोषित किए जाएंगे। एग्जिट पोल के नतीजे कई बार वास्तविक परिणामों से मेल नहीं खाते, इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियाँ अभी भी अपनी-अपनी तैयारियों में लगी हुई हैं। इस चुनाव ने यह दिखाया है कि विपक्ष में अपने को पुनः स्थापित करने के लिए एक स्पष्ट रणनीति और संगठनात्मक ताकत की आवश्यकता होती है। कांग्रेस द्वारा प्रदर्शनित बढ़त संभवतः भविष्य में विपक्ष की भूमिका को पुनर्जीवित करने में सहायक हो सकती है।
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