पंजीकरण स्थिति समाचार
हिमाचल प्रदेश में मानसिक रोगी के पेट से निकले 33 सिक्के, डॉक्टर भी रह गए हैरान
Abhishek Rauniyar

Abhishek Rauniyar

मानसिक बीमारी ने पहुंचाया अस्पताल, पेट में छुपे थे 33 सिक्के

हिमाचल प्रदेश के घुमारवीं स्थित रेनबो अस्पताल में उस दिन एकदम अलग माहौल था। एक 33 साल का युवक पेट में भयानक दर्द और सूजन लेकर इमरजेंसी में लाया गया। शुरुआती जांच में कुछ समझ नहीं आया, लेकिन डॉक्टरों ने अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे जैसे इमेजिंग टेस्ट करवाए तो सच्चाई सामने आई—मरीज के पेट में 33 सिक्के फंसे थे। इन सिक्कों का कुल वजन 247 ग्राम था और कीमत करीब 300 रुपये थी। जिसे सुनकर डॉक्टर भी हैरान रह गए।

मरीज का पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा इलाज चल रहा था। उसे स्कीजोफ्रेनिया नामक गंभीर मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति अपनी सोच और व्यवहार को नियंत्रित नहीं कर पाता। ऐसे मामलों में कभी-कभी लोग ऐसी चीज़ें भी खा लेते हैं, जो खाने योग्य नहीं होतीं—जैसे प्लास्टिक, पत्थर या फिर सिक्के। ये स्थिति मेडिकल भाषा में 'पिका डिसऑर्डर' कहलाती है, जो मानसिक समस्याओं के मरीजों में ज्यादा देखी जाती है।

तीन घंटे तक चला ऑपरेशन, डॉक्टरों की सूझबूझ से बची जान

तीन घंटे तक चला ऑपरेशन, डॉक्टरों की सूझबूझ से बची जान

रेनबो अस्पताल की टीम ने इस केस को गंभीरता से लिया। तुरंत सर्जरी की तैयारी की गई और करीब तीन घंटे तक चला ऑपरेशन। पेट के भीतर से अलग-अलग आकार और विभिन्न मूल्य के सिक्के एक-एक कर निकाले गए। सर्जन बताते हैं कि सिक्के बड़ी संख्या में जमा होकर आंतों में रुकावट और घाव बना सकते थे। ऐसे हालात में देरी करना जानलेवा साबित हो सकता था। अच्छी खबर ये है कि सभी सिक्के बिना किसी जख्म या आंतों को नुकसान पहुंचाए सही-सलामत निकाल लिए गए। फिलहाल मरीज की हालत स्थिर है, मगर उसकी पूरी रिकवरी में समय लग सकता है।

इस घटना ने मानसिक रोगियों की नियमित देखभाल और निगरानी की जरूरत को उजागर कर दिया है, खासतौर पर ऐसे लोगों में, जिन्हें स्कीजोफ्रेनिया जैसी बीमारियाँ हैं। परिवार और समाज को चाहिए कि ऐसे मरीजों को अकेला न छोड़ें और हर असामान्य व्यवहार पर नजर रखें। इस मामले ने फिर साबित किया कि कभी-कभी इंसान के दिमाग की उलझनें शरीर के लिए भी खतरा बन जाती हैं—और सतर्कता ही सबसे बड़ा इलाज है।

लोकप्रिय टैग : हिमाचल प्रदेश मानसिक स्वास्थ्य सिक्के पेट में दुर्लभ सर्जरी


टिप्पणि

gaurav rawat

gaurav rawat

21 अप्रैल 2025

भाई, बहुत हैरान कर देने वाला केस! 😲

Vakiya dinesh Bharvad

Vakiya dinesh Bharvad

20 मई 2025

हिमाचल की ये खबर सुनकर दिल से दंग रह गया 😊 पर इस तरह की पिका डिसऑर्डर बहुत दुर्लभ नहीं है

Aryan Chouhan

Aryan Chouhan

17 जून 2025

अरे यार ये डॉक्टर भी क्या कर रहे हैं? 33 सिक्के निकालना तो आसान लगता है पर मस्तिष्क के रोगियों की फिकर क्यूँ नहीं?

Tsering Bhutia

Tsering Bhutia

15 जुलाई 2025

वाकई, पिका डिसऑर्डर वाले रोगियों को अक्सर अनजाने में ऐसी चीज़ें गिल लेती हैं।
सर्जरी के बाद मरीज को पोषण और मनोवैज्ञानिक देखभाल दोनों की जरूरत होती है।
परिवार को भी सतर्क रहना चाहिए और खाने-पीने की निगरानी में मदद करनी चाहिए।
डॉक्टरों ने समय पर ऑपरेशन किया, इसलिए बड़ी राहत मिली।
आगे की रिहाइश में नियमित फॉलो‑अप और थेरेपी से पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है।

Narayan TT

Narayan TT

13 अगस्त 2025

यहाँ केवल आँकड़े नहीं, बल्कि सामाजिक उपेक्षा की गहरी जड़ें हैं।
ऐसी घटनाएँ चेतावनी देती हैं कि मनोविज्ञान को साक्षरता के साथ जोड़ा जाए।

SONALI RAGHBOTRA

SONALI RAGHBOTRA

10 सितंबर 2025

समाज में मानसिक स्वास्थ्य को अक्सर टाल‑मटोल की नजर से देखा जाता है।
पर जब कोई रोगी ऐसे जोखिमभरे व्यवहार करता है, तो यह आँकड़े नहीं, वास्तविक जीवन की मार है।
पहले हमें यह समझना चाहिए कि पिका डिसऑर्डर केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि परिवार और सामाजिक समर्थन की कमी का परिणाम है।
डॉक्टरों की सतर्कता सराहनीय है, पर उन्हें भी मनोवैज्ञानिक परामर्श के साथ मिलाकर कार्य करना चाहिए।
परिवार को चाहिए कि वे रोगी की डाइट और दिनचर्या पर निरन्तर नज़र रखें।
स्किज़ोफ्रेनिया जैसी गंभीर बीमारियों में दवाइयों का सेवन नियमित होना अनिवार्य है।
साथ ही, रोगी को तनाव‑मुक्त वातावरण देना उसकी रिकवरी में मददगार सिद्ध होता है।
समुदाय के स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करके इस तरह के मामलों को रोका जा सकता है।
स्कूल और कार्यस्थल में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को अनिवार्य बनाना एक बड़ा कदम होगा।
भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए नियमित मेडिकल स्क्रीनिंग को भी अपनाना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति लगातार अजीब चीज़ें निगल रहा हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
सुरक्षित और पोषक आहार प्रदान करने से रोगी का शरीर और मन दोनों मजबूत बनता है।
हम सभी को मिलकर एक सहायक नेटवर्क बनाना चाहिए जहाँ रोगी बिना शर्म के मदद माँग सके।
अंत में, इस केस ने हमें यह सिखाया कि मनोविज्ञान और शारीरिक स्वास्थ्य आपस में जुड़े हुए हैं।
आइए, हम अपनी दयालुता और जिम्मेदारी को बढ़ाते हुए इस दिशा में कदम बढ़ाएँ।

sourabh kumar

sourabh kumar

8 अक्तूबर 2025

चलो सभी मिलकर इस मुद्दे को हल करें, रोगी की देखभाल में हम सबका सहयोग ज़रूरी है 😊
बिना झिझक डॉक्टर और काउंसलर से जुड़ें और सकारात्मक बदलाव लाएँ।

एक टिप्पणी लिखें