फिल्म समीक्षा: फ्यूरियोसा का निराशाजनक सफर
फिल्म 'फ्यूरियोसा: ए मैड मैक्स सागा' के लिए दर्शकों में बड़ी उम्मीदें थीं, जो खासकर 'मैड मैक्स: फ्यूरी रोड' के प्रशंसकों के लिए बनी थी। यह प्रीक्वल फिल्म 2015 की उस अद्भुत और साहसिक फिल्म का प्रारंभिक हिस्सा दिखाने का प्रियास करती है, जिसमें चार्लीज़ थेरॉन की अद्वितीय नायिका फ्यूरियोसा ने हमारे दिलों में गहरी छाप छोड़ी थी।
अन्या टेलर-जॉय ने इस बार फ्यूरियोसा के किरदार को निभाया है और फिल्म की पृष्ठभूमि उसी जल और ईंधन की कमी वाली पोस्ट-अपोकल्यप्टिक दुनिया में स्थापित की गई है। परंतु, फिल्म को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि इसे लेकर जो उम्मीदें थीं, वे पूरी नहीं हो सकीं।
फिल्म की कहानी फ्यूरियोसा के अपहरण और उसके संघर्षों पर केंद्रित है, जिसमें क्रिस हेम्सवर्थ ने डेमेंटस का किरदार निभाया है। उन्हें एक युद्धलॉर्ड इम्मोर्टन जो और उसके सिटाडेल के खिलाफ लड़ते हुए दर्शाया गया है। हालांकि, यह वही परिचित सेटिंग और एक्शन सीक्वेंसेस हैं जिनके लिए 'मैड मैक्स' फिल्में जानी जाती हैं, लेकिन इस बार वे उत्तेजना और भावनात्मक गहराई की कमी महसूस होती है।
अभिनय और कहानी
फिल्म में अन्या टेलर-जॉय का अभिनय बेहतरीन है, लेकिन वह दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने में विफल रहती हैं। चार्लीज़ थेरॉन की नायिका वाली छवि अभी भी लोगों के दिलों में ताजा है और उनके द्वारा निभाए गए किरदार की तुलना में टेलर-जॉय का प्रदर्शन कमजोर लगता है। इस किरदार की गहराई और आक्रामकता को दर्शाने में फिल्म असफल साबित होती है।
क्रिस हेम्सवर्थ के डेमेंटस का किरदार भी अत्यधिक नाटकीय लगता है। उनका अभिनय इस फिल्म का मजबूत पक्ष नहीं है। उन्होंने अपने अभिनय में अत्यधिक आलंकरण किया है, जो किरदार की गंभीरता को कम करता है।
डेमेंटस के अत्यधिक प्रदर्शन और लगातार वाहन पीछा करते रहने वाले एक्शन दृश्यों की एकरसता फिल्म को बोरिंग बना देती है। जहां एक तरफ 'फ्यूरी रोड' में हर एक्शन सीक्वेंस में नई ताजगी और उत्तेजना थी, वहीं इस फिल्म में यह पहलू गायब नजर आता है।
निर्देशन और संपादन
फिल्म का निर्देशन और संपादन दोनों ही प्रमुख रूप से कमजोर कड़ियां हैं। फिल्म की लंबाई दर्शकों को पकड़ कर रखने में असफल रहती है। कहानी में कई ऐसे दृश्य हैं जो बेवजह खींचे गए लगते हैं, जो दर्शकों की रुचि को कम कर देते हैं।
निर्देशक ने कोशिश की है कि फिल्म में पुरानी फिल्मों की झलक मिले, लेकिन यह प्रयास उनके खिलाफ ही जाता है। कहानी और निर्देशन के तालमेल की कमी महसूस होती है, जो फिल्म को दिशा देने में असफल साबित होती है।
संक्षेप में
'फ्यूरियोसा: ए मैड मैक्स सागा' एक ऐसा प्रीक्वल है जिसे लेकर प्रशंसकों में अत्यधिक उम्मीदें थीं, लेकिन अंततः यह एक बड़ी निराशा के रूप में सामने आया है। अन्या टेलर-जॉय का अभिनय, क्रिस हेम्सवर्थ का अत्यधिक नाटकीय प्रदर्शन, और वाहनों के नीरस पीछा करने वाले दृश्य फिल्म को कमजोर बना देते हैं। चार्लीज़ थेरॉन द्वारा निभाए गए किरदार की तुलना में यह फिल्म फीकी साबित होती है।
फिल्म को देखने के बाद यह एहसास होता है कि यह प्रीक्वल 'फ्यूरी रोड' की रोमांच और भावनात्मक गहराई को नहीं पकड़ पाई है, जिससे दर्शकों को निराशा हाथ लगी है।
टिप्पणि
Harshil Gupta
23 मई 2024देखा तो मैंने फ्यूरियोसा का प्रीक्वल, और सोचा था कि मैड मैक्स की वो रफ टोन फिर से देखूँगा। कहानी में थोड़ा दुरुस्त नहीं लग रहा, पर सेटिंग वैसा ही पेस्टल‑पैटर्न वाला है। मुख्य किरदार को लेकर उम्मीदें बहुत थीं, इसलिए शुरुआती तनाव समझ आता है। फिर भी कुछ सीन में कैमरा वर्क काफी बढ़िया था, विशेषकर रेगिस्तानी पैनोरामा। कुल मिलाकर यह फिल्म एक ट्रायल रन जैसा है, जिसका मतलब है कि अगली भाग में सुधार की गुंजाइश बहुत है।
Rakesh Pandey
3 जून 2024भाई ये प्रीक्वल तो बिल्कुल बोरिंग लग रहा था 😒 एक्शन तो तैयार था, पर दिल नहीं लगा। डायलगues में भी वही पुरानी क्लिशे भरी बातें दोहरायी गईं, जैसे कोई कापी‑पेस्ट। डेमेंटस का किरदार तो बहुत अतिशयोक्तिपूर्ण था, ऐसा लगा जैसे वो खुद को ही नहीं बल्कि पूरे ओपन‑वर्ल्ड को भी बिगाड़ रहा है। चलो, अगली बार उम्मीद रखूँगा कि चीज़ें अधिक ताज़ा हों।
Simi Singh
13 जून 2024कहते हैं हिडेन एजेंडा है इस प्रीक्वल में, जैसे कि बड़े कॉरपोरेट्स ने फ़िल्म को अपने ब्रांडिंग टूल के तौर पर इस्तेमाल किया हो। फिल्म में दिखाया गया ईंधन की कमी, वास्तविक दुनिया के ऊर्जा संकट की एक झलक हो सकती है। लेकिन वो गहरा संदेश तो बस पृष्ठभूमि में ही फिट हो गया, दर्शकों को झुकाने के बजाय सिर्फ़ एक्शन पर ध्याना दिया गया। शायद वे चाहते थे कि लोग सूचनात्मक रूप से नट नहीं हो, बस शानदार पर्सनल ट्रैजिक देखे। इस तरह का कवर‑अप आम है, इसलिए सावधान रहें।
Rajshree Bhalekar
23 जून 2024मैं तो बस यही कहूँगी, फिल्म देख कर दिल में थोड़ा उदासी आई। फ्यूरियोसा की ऊर्जा और जज़्बा यहाँ नहीं दिख रहा।
Ganesh kumar Pramanik
3 जुलाई 2024समी जी, आपके हिसाब से हिडेन एजेंडा है तो भी देखिए, एक्शन सीन में कई बार कैमरा पॉइंट ऑफ़ व्यू बहुत ज़्यादा झुका हुआ था। इससे लगता है कि निर्देशक ने व्यूएर की इमोशन को मूव नहीं किया, बल्कि सिर्फ़ शॉट्स को कॉम्पोज़ किया। शायद यह तकनीकी कारण था न कि कोई साजिश।
Abhishek maurya
14 जुलाई 2024फ्यूरियोसा का प्रीक्वल देखना मेरे लिए एक ज़्यादा‑ज़्यादा रोमांचक अनुभव था, लेकिन साथ ही यह कई पहलुओं में घुटन भी महसूस कराता है। सबसे पहले, कहानी का ढाँचा बहुत फॉर्मल दिखता है, जैसे कि निर्माताओं ने क्लासिक मैड मैक्स टेम्पलेट को हॉल्ट‑सेक्शन में डंप कर दिया हो। दूसरा, अन्या टेलर‑जॉय का किरदार कई मौकों पर थोडा एकसाइडेड दिखता है; उनका इमोशन रेंज सीमित लगता है, जबकि फ्यूरियोसा की शक्ति को दिखाने वाले सीन में बहुत सारा जज़्बा होना चाहिए था। आगे का बिंदु, क्रिस हेम्सवर्थ का डेमेंटस, वास्तव में बहुत अधिक नाटकीय बना, जैसे कि वह खुद का ही शेड्यूल नहीं बना पाता। वह भावनात्मक गहराई प्रस्तुत करने की कोशिश में अतिसूक्ष्मता को खींच लेता है, और दर्शकों को असहज बना देता है।
तीसरा, फिल्म में बहुत सारे वाहन पीछा करने वाले दृश्यों में विविधता नहीं दिखती; वही दो-तीन वाहन मॉडल और वही स्टीयरिंग एंगल दोहराते रहते हैं। इससे ऑडियन्स की मनोविज्ञानात्मक थकान बढ़ जाती है, क्योंकि मस्तिष्क नयी विज़ुअल स्टिम़ुली की तलाश में रहता है।
चौथा, पेसिंग की बात करें तो यह बीच में बहुत धीमा हो जाता है, जैसे कि बेसिक एंगेजमेंट ड्रॉप हो। एडिटिंग के बीच में कई सीन अकारण बढ़ाए गये हैं, जो फ़िल्म की कुल लंबाई को अनावश्यक रूप से फुलाते हैं।
पाँचवां, साउंडट्रैक में कॉम्पोज़िशन सपोर्ट नहीं करता, क्योंकि वह भी वही साउन्ड इफेक्ट्स को बार‑बार दोहराता है। इसे एक अलग फ्रीक्वेंसी एंट्री लेना चाहिए था, ताकि दर्शकों को नई ऑडियो एन्हांसमेंट मिल सके।
छटा, फ़िल्म की डायलॉग लिखावट में बहुत सारे क्लिशे और कॉमन फ्रेज़ेज़ मौजूद हैं। यह दर्शाता है कि लिखने वाले ने मूल विचार को अंतिम रूप नहीं दिया, बल्कि पॉप कल्चर की बर्निंग फ़ैशन को ही दोहराया।
सातवां, सेट डिज़ाइन में भी रचनात्मकता की कमी है। टॉपोग्राफी, रंग पैलेट, और टेक्सचर में अक्सर वही पैटर्न दोहराया गया। किसी नई रचनात्मकता की कमी को केवल बजट कटौती की वजह माना जा सकता है, पर यह दिखाता है कि तकनीकी डिटेल्स पर कम ध्यान दिया गया।
आठवां, एक्टिंग के अलावा, कॉस्ट्यूम्स में भी बहुत कम इंटेन्सिटी है, जैसे कि वही कपड़े और एक्सेसरीज़ कई सीन में दोहराए गये। यह दर्शकों के मन में नयी पहचान और इन्नोवेशन की खाई को बढ़ाता है।
नौवां, निर्देशक ने वास्तव में दृश्यों में भावनात्मक गहराई जोड़ने के लिए अतिरिक्त टेम्पो एन्हांसमेंट नहीं किया, जिससे सम्पूर्ण फ़िल्म फाइलस्ट्रिम की तरह लगती है, न कि एक इमर्सिव स्टोरीटेलिंग एक्सपीरियंस।
अंत में, यदि हम फ़िल्म को एक बड़े फ्रेमवर्क के अंदर देखें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह फ़िल्म एक रूटीन प्रॉजेक्ट के रूप में जारी हुई, जहाँ क्रिएटिविटी और नरेटिव इनोवेशन को पहली प्राथमिकता नहीं मिली। कुल मिलाकर, ये सभी बिंदु एक साथ मिलकर फ़िल्म को एक सामान्य, निराशाजनक सफर बनाते हैं, जिसने संभवतः दर्शकों की अपेक्षाओं को बहुत अधिक खींचा और फिर पूरी तरह से न गिरा।
Sri Prasanna
24 जुलाई 2024ये सच में बहुत ही बेकार चीज़ है हम जैसे लोग टाइम बर्बाद ना करें
Sumitra Nair
3 अगस्त 2024जब हम कलात्मक अभिव्यक्ति की गहराई में उतरते हैं, तो प्रत्येक फ्रेम एक विचारधारा का प्रतिबिंब बन जाता है; परन्तु इस फिल्म ने उस दार्शनिक यात्रा को बायाँ मोड़ दिया, जिससे दर्शक अपनी आत्मा को फिर से खोजने की राह नहीं पा सके।
Ashish Pundir
13 अगस्त 2024फिल्म बहुत बोरिंग थी।
gaurav rawat
23 अगस्त 2024अभिनय के बारे में आपका बहुत बड़ा बिंदु है, पर मैं देख रहा हूँ कि फोकस पैशन पर है, और वो भी थोड़ा कम है। मैं इस बात से सहमत हूँ कि हमें आगे बहुत कुछ सुधरना चाहिए।
Vakiya dinesh Bharvad
3 सितंबर 2024फ़िल्म का एंट्री बहुत शुरुआती आशा नहीं देता 😐
Aryan Chouhan
13 सितंबर 2024भाई देखो, एडीटिंग में तो टाइमलाइन उलटा-पुल्टा है, जैसे कुछ भी ठीक से नहीं बैठ रहा। वाकई में स्ट्रेपिंग उतना नहीं जितना सेल्फ‑रिप्रोजेक्ट चाहिए था।
Tsering Bhutia
23 सितंबर 2024है ना, कभी‑कभी लाइटर मोमेंट्स में खूब मज़ा आता है, लेकिन यहाँ तो बस रूटीन राइड है। फिर भी, अगली बार बेहतर करने की उम्मीद रखूँगा! 😊
Narayan TT
3 अक्तूबर 2024दोहरे मानकों की यह फिल्म एक बौद्धिक दुविधा प्रस्तुत करती है, जो न केवल दर्शकों को बल्कि समीक्षकों को भी उलझन में डाल देती है।
SONALI RAGHBOTRA
14 अक्तूबर 2024फिल्म की गति काफी अनियमित थी, कभी तेज़ तो कभी रुक-रुके। कुछ सीन में तो ऐसा लगा जैसे समय ने खुद ही रुक गया हो। एंजॉय करने वाले दर्शकों के लिए ये एक समस्या बन सकती है। लेकिन फिर भी कुछ दृश्य में कैमरा वर्क काबिले‑तारीफ़ था। कुल मिलाकर, यह मध्यम स्तर की फिल्म है।
sourabh kumar
24 अक्तूबर 2024सोनाली जी का विश्लेषण काफी संतुलित था, जिसमें उन्होंने फिल्म के सकारात्मक पहलुओं को भी उजागर किया। यह एक अच्छी बात है कि उन्होंने बारीकी से बताया कि किस हिस्से में सुधार की ज़रूरत है। मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूँ और आशा करता हूँ कि भविष्य की क़िस्से बेहतर होंगी।
khajan singh
3 नवंबर 2024भाई लोग, जैसा कि मेरे शब्दजाल में अक्सर आता है, यह प्रीक्वल एक बेस्ट‑प्रैक्टिस केस नहीं बनता; नॉवेल्टी की कमी इसे कम्युनिटी‑फ़्रेंडली बनाती है।
Dharmendra Pal
13 नवंबर 2024समग्र रूप से तकनीकी दृष्टिकोण से देखें तो साउंड मिक्सिंग और लाइटिंग में कुछ सुधार की गुंजाइश है; यह सुझाव दिया जाता है कि भविष्य की परियोजनाओं में इन पहलुओं पर अधिक ध्यान दिया जाए।