अगर आप माओवादी गतिविधियों पर नज़र रख रहे हैं तो यह पेज आपके लिए है। यहाँ हम सबसे नए केस, सरकारी कदम और आम जनता के लिये उपयोगी टिप्स को सरल भाषा में बताते हैं। कोई जटिल शब्द नहीं, सिर्फ वही जो समझना जरूरी है।
पिछले महीने कर्नाटक के जंगलों में दो माओवादी ग्रुप मिलकर एक पुलिस पोस्ट पर हमला कर दिया था। रिपोर्टों के मुताबिक 3 जवान घायल हुए और कुछ हथियार बरामद किए गए। इसी समय छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्रों में जमीन से जुड़ी झड़पें बढ़ गईं, जहाँ स्थानीय लोग माओवादियों की धारा को रोकने के लिए खुद मिलकर गश्त कर रहे हैं। ये घटनाएँ दिखाती हैं कि समस्या अब सिर्फ दूर नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी तेज़ी से फैल रही है।
दिल्ली‑एनसीआर में हाल ही में एक बड़ी गिरफ्तारी हुई, जहाँ दो प्रमुख माओवादी नेता को अंतरराष्ट्रीय सीमा पार भागते हुए पकड़ा गया। इस केस ने दिखाया कि नेटवर्क अब सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि शहरों और हाईवे पर भी काम कर रहा है। सरकार ने बताया कि यह सफलता कई एजेंसियों की संयुक्त ऑपरेशन का नतीजा है।
इन मामलों के जवाब में केंद्र सरकार ने विशेष माओवादी विरोधी कानून को तेज़ किया है। अब किसी भी व्यक्ति को जो माओवादी समूहों से जुड़ी जानकारी देता है, उसे 10 साल तक की सजा मिल सकती है। साथ ही, राज्यों ने अलग‑अलग एंटिटेरर सेल बनाकर तुरंत प्रतिक्रिया देने का प्रावधान किया है। यह नियम खासकर उन क्षेत्रों में लागू हो रहा है जहाँ हिंसा बार-बार होती है।
अगर आप किसी माओवादी गतिविधि की सूचना देना चाहते हैं तो सबसे तेज़ तरीका मोबाइल ऐप या 112 पर कॉल करना है। अधिकांश राज्यों ने व्हॉट्सएप हेल्पलाइन भी शुरू की है, जिससे लोग तुरंत रिपोर्ट कर सकते हैं बिना पहचान बताए। इस तरह से कई छोटे‑छोटे कृत्य रोकने में मदद मिल रही है।
कानून के अलावा, सरकार ने सामाजिक विकास योजनाओं पर भी ज़ोर दिया है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर बढ़ाने से युवा को माओवादी विचारधारा से दूर रखा जा सकता है। कई राज्यों में स्कॉलरशिप और कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहे हैं जो सीधे प्रभावित क्षेत्रों में लागू हो रहे हैं।
अंत में यह कहना सही होगा कि माओवादी मामले सिर्फ सुरक्षा की बात नहीं, बल्कि सामाजिक असमानता का भी प्रतिबिंब हैं। इसलिए समस्या को हल करने के लिये केवल पुलिस ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को मिलकर काम करना पड़ेगा। आप अपने पड़ोस में जागरूकता फैलाकर, स्थानीय समूहों के साथ सहयोग करके इस दिशा में योगदान दे सकते हैं।
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पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी एन साईंबाबा का निधन स्वास्थ्य जटिलताओं के कारण हुआ। माओवादी लिंक मामले में बरी होने के सात महीने बाद उनका निधन 54 वर्ष की आयु में हुआ। सोमवार को हैदराबाद के निज़ाम्स इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (NIMS) में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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